बुक्स हिंदी 

-16%

Digital Media Handbook / डिजिटल मीडिया हैंडबुक

385.00 325.00

ISBN: 978-93-93486-65-3
Edition: 2023
Pages: 228
Language: Hindi
Format: Paperback

Author : Irfan-e-Azam

18 in stock

Compare
SKU: DM (Paperback) Categories: ,

Description

यह पुस्तक उन सभी के लिए है, जो किसी भी रूप में डिजिटल मीडिया व सोशल मीडिया से जुड़े हुए हैं। वे चाहे कोई वेबसाइट चलाते हों, यू-ट्यूबर हों, रील बनाते हों, ब्लॉगर हों, अपना पेज लिखते हों, पॉडकास्टर हों, ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल संचालित करते हों, या किसी भी तरह के कंटेंट क्रिएटर हों, या फिर डिजिटल मीडिया व सोशल मीडिया के आम उपयोगकर्ता ही क्यों न हों। यह पुस्तक सभी के लिए बहुत उपयोगी है, क्योंकि डिजिटल मीडिया व सोशल मीडिया की दुनिया में क्या करना है, क्या नहीं करना है, क्या कर सकते हैं, क्या नहीं कर सकते हैं, संचालकों से लेकर आम उपयोगकर्ताओं तक के अधिकार क्या-क्या हैं, कर्तव्य क्या-क्या हैं, इन तमाम पहलुओं के मद्देनज़र नियम क्या-क्या हैं, कानून क्या-क्या हैं, सरकारी दिशा निर्देश क्या-क्या हैं? ऐसी ही अनेक जिज्ञासाओं का सहज-सरल समाधान है यह पुस्तक।

वे लोग, जो ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल चलाते हैं या चलाना चाहते हैं, उनके लिए तो यह पुस्तक बेहद जरूरी है। ऑनलाइन पत्रकारिता में रुचि रखनेवालों के लिए और किसी न किसी रूप में पत्रकारिता से जुड़े हुए लोगों-यथा पत्रकारिता के विद्यार्थी, प्रतियोगी परीक्षाओं के परीक्षार्थी, शोधार्थी, अध्यापक, आम पाठक, दर्शक व श्रोता, हर किसी के लिए यह बहुत काम की पुस्तक है। प्रशिक्षु पत्रकार, अप्रशिक्षित पत्रकार, सिटिजन जर्नलिस्ट (नागरिक पत्रकार) व नए डिजिटल पत्रकारों के लिए तो यह पुस्तक विशेष रूप से उपयोगी है।

इस पुस्तक में डिजिटल मीडिया व सोशल मीडिया के आवश्यक नियम-कानून और पत्रकारिता की बुनियादी व तकनीकी बातें अत्यंत सहज-सरल व आम बोलचाल की भाषा में प्रस्तुत की गई हैं।

आज 21वीं सदीं का यह नया दौर न्यू मीडिया का दौर है। इंटरनेट सुविधा-युक्त स्मार्ट फोन वाले इस स्मार्ट दौर में अत्याधुनिक तकनीक व सूचना प्रौद्योगिकी का ऐसा तेज़ रफ्तार विकास हुआ है, जन-जन तक इसकी इतनी सस्ती और आसान पहुँच हो गई है कि? इस नए दौर ने नए ‘हाइपर-लोकल मीडिया’ (Hyper local Media)  को जन्म दे डाला है। यही वजह है कि अब सिर्फ इंटरनेशनल, नेशनल व रीजनल न्यूज़ चैनल ही नहीं चलते हैं, बल्कि असंख्य लोकल व हाइपर-लोकल न्यूज़ चैनल भी चलने लगे हैं, जिसे नए जम़ाने की नई शब्दावली में न्यूज़ पोर्टल कहते हैं। अब केवल शहरों से ही नहीं, बल्कि गाँव-गाँव, गली-मुहल्लों तक से न्यूज़ पोर्टल चलने लगे हैं। इस एकदम किफ़ायती व आसान जनसंचार सुविधा ने हर किसी को पत्रकार बना डाला है। आज हर कोई पत्रकार है। ब्लॉगर से लेकर यूट्यूबर तक। फेसबुक यूजर से लेकर पॉडकास्टर और वेबकास्टर तक। ट्वीट-ट्वीट, इंस्टा-इंस्टा, वगैरह-वगैरह। ऐसे पत्रकारों की तादाद लाखों-करोड़ों में है। अब कोई भी पत्रकार, संपादक या प्रकाशक का मोहताज नहीं रह गया है। हर कोई खुद ही पत्रकार है, संपादक है व खुद ही प्रकाशक भी है। बस मोबाइल उठाया, कैमरा चलाया, ख़बरों को बनाया और डिजिटल मीडिया या सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर परोस डाला। अपने-अपने डिजिटल मीडिया व सोशल मीडिया चैनलों के माध्यम से अब लोग न सिर्फ अपने आस-पास के मुद्दों को उठाने लगे हैं, बल्कि देश-दुनिया के हर मुद्दे पर भी मुखर होने लगे हैं।

यह ‘फ्री सोसाइटी’ के लिए बड़ी अच्छी बात है। इससे “बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे…” को बड़ा बल मिलता है। ऐसे ‘लोक’ से ‘लोकतंत्र’ के ‘लोक’ और ‘तंत्र’ दोनों को बड़ी मजबूती मिलती है, मगर इसमें ‘कुछ चीज़ें’ आड़े भी आ जाती हैं।

यह अच्छी बात है कि ‘सिटिजन जर्नलिज्म’ के इस दौर में हर सिटिजन, जर्नलिस्ट है। हर नागरिक पत्रकार है। लोग अपना न्यूज़ पोर्टल चलाते हैं या फिर डिजिटल मीडिया व सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्मों पर अपने अकाउंट से अपनी तरह की पत्रकारिता करते हैं, मगर कहते हैं न कि “लिटिल नॉलेज इज डेंजरस थिंग”, उसी से डिजिटल मीडिया व सोशल मीडिया के इस दौर को भी दो-चार होना पड़ रहा है। ख़बरें तो अनगिनत लोग परोस रहे हैं, लेकिन ख़बरों को परोसा कैसे जाता है, उसके कानूनी, तकनीकी व बुनियादी पहलू क्या-क्या हैं, इससे ज्यादातर लोग अनभिज्ञ ही हैं। इसका ख़ामियाज़ा न सिर्फ उन्हें, बल्कि समय, समाज, राज्य, देश व दुनिया सभी को झेलना पड़ रहा है। कहते हैं कि एक डॉक्टर ग़लती करे तो एक मरीज प्रभावित होता है। एक वकील ग़लती करे तो एक मुवक्किल प्रभावित होता है। एक इंजीनियर ग़लती करे तो एक संरचना पर असर पड़ता है, मगर एक पत्रकार ग़लती करे तो उससे सारा समाज प्रभावित हो जाता है। इसलिए पत्रकारों का हर पल सजग-सचेत व जिम्मेदारी भरा होना बेहद जरूरी है। वह भी खास कर पत्रकारिता कर्म के तकनीकी एवं कानूनी पहलू के प्रति कम से कम बुनियादी जानकारी तो एकदम जरूरी ही है।

इसी के मद्देनज़र दिल में यह ख़याल आया कि क्यों न ऐसी कोई पुस्तक लिखी जाए, जो नए ज़माने के नए पत्रकारों के हौसलों को बेहतर उड़ान दे, उनकी आवाज़ को बुलंदी दे, जो प्रायोगिक धरातल पर व्यावहारिकता को सिद्धांत की शक्ति से लैस करे जो अप्रशिक्षित पत्रकारों को धार दे, जो प्रशिक्षु पत्रकारों को राह दिखाए, जो पत्रकारिता में भविष्य सँवारने की चाहत रखने वालों का मार्गदर्शन करे और जो पढ़ने-पढ़ाने वालों के लिए सहायक सिद्ध हो, जो डिजिटल मीडिया जर्नलिस्ट्स की गाइड हो। बस, उसी माथापच्ची के नतीजे में आप सबके सामने है यह पुस्तक ‘डिजिटल मीडिया हैंडबुक’।

इसे तैयार करने के दौरान मैं जितने पसोपेश में यह लेकर रहा कि इस पुस्तक में क्या-क्या रखना है, उससे ज्यादा पसोपेश में यह लेकर रहा कि इसमें क्या-क्या नहीं रखना है। कुल मिला कर इस पुस्तक में बस उतनी ही और वही सारी बातें रखी हैं, जो प्रायोगिक पत्रकारिता के लिए बेहद जरूरी हैं, वरना ज्ञान की तो कोई सीमा ही नहीं होती। उम्मीद ही नहीं; यकीन भी है कि मेरी यह मामूली सी कोशिश बहुतों के बड़े काम आएगी।

इसी आशा और विश्वास के साथ आप सभी को समर्पित है, ‘डिजिटल मीडिया हैंडबुक’।

Vendor Information

  • 5.00 5.00 rating from 3 reviews
X

< Menu