Description
25 अप्रैल, 1941 को बर्लिन रेडियो से अचानक सुभाष बाबू की वाणी सुनकर हिंदुस्तान में लोग खुशी से नाच उठे।
‘इतने बड़े संसार में हमारा एक और केवल एक ही शत्रु है-ब्रिटिश साम्राज्य। इस समय वह युद्ध में घिरा हुआ है। अगर वह इस जंग में जीत गया तो उसकी शक्ति पहले से कहीं अधिक बढ़ जाएगी और वह हमारे देश को कतई आजाद नहीं करेगा। इसके विपरीत, अगर वह हार गया तो उसे मजबूरन अपना विस्तार समेटना पड़ेगा। याद रहे, पिछले महायुद्ध को अंग्रेजों ने हमारी सहायता से जीता था, परंतु उसका पुरस्कार हमें अधिक इमन व जनसंहार के रूप में मिला। इस बार हमें उस गलती को नहीं दोहराना। हर हिंदुस्तानी का यह धर्म है कि मौके का लाभ उठाकर दुश्मन की हार का हर संभव उपाय जरूर करे। यही काम आपको देश के अंदर रहकर करना है और यही काम करने के लिए मैं देश से बाहर आ गया हूँ-लक्ष्य हम सभी का एक है तथा एक ही होना चाहिए।’
-इसी पुस्तक से।
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