Description
यह उपन्यास मूल्यहीनता के महाशून्य में खड़ी देश की पूरी पीढ़ी को इस सात्विक अनुभूति से आश्वस्त करता है कि पाप और पापी से लड़ने के लिए हमें स्वयं कृष्ण होना होगा, तभी धर्म की विजय होगी। काल चाहे कोई-सा भी हो।
पौराणिक मिथकों को आज के परिवेश में जिस कलात्मकता से मुकेश परमा ने सहेजा है, वह उनकी लेखनी के प्रति अनेक आशाएं जगाता हैं उनकी इस कृति का साहित्य जगत में और रसज्ञ पाठक वर्ग में निश्चित ही स्वागत होगा।
-पं. सुरेश नीरव