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Bhasha Vimarsh : Dr. Hira Lal Bachhotiya

600.00 510.00

ISBN: 978-81-934325-1-8
Edition: 2017
Pages: 352
Language: Hindi
Format: Hardback

Author : Dr. Hari Singh Pal

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Description

हिंदी को आधुनिक बनाने के नाम पर विशेषकर हिंदी अखबारों द्वारा अंग्रेजी शब्दों की मिलावट करना एक जानी-बूझी रणनीति प्रतीत होती है। हिंदी की प्रयोजन- मूलकता के संदर्भ में कुछ अंग्रेजी शब्दों को अपना लेना स्वीकार्य है किंतु हिंदी को हिंगलिश बनाने के षड्यंत्र पर विमर्श आज की जरूरत है। हमारे अनुरोध पर देश के भाषा-चिंतकों, विद्वानों आदि के विचार भाषा विमर्श के अंतर्गत दिए गए हैं जिनमें व्यक्त विचारों का मूल स्वर मिलावट की प्रवृत्ति पर ‘नजर रखना’ और उसे नकारना है।
डाॅ. हीरालाल बाछोतिया एक रचनाकार के साथ-साथ भाषा-विज्ञान अध्येता भी हैं। एन. सी. ई. आर. टी. में रहते हुए उन्होंने हिंदी को द्वितीय और तृतीय भाषा के रूप में पढ़ने हेतु पाठ्यपुस्तकों, दर्शिकाओं और अभ्यास पुस्तिकाओं का निर्माण किया। उनके द्वारा निर्मित यह पठन सामग्री भाषोन्मुख है जो हिंदीतर भाषाभाषी विद्यालयों के लिए ‘प्रोटोटाइप’ या प्रादर्श सामग्री है। हिंदी शिक्षण पर पुस्तक लेखन के साथ उन्होंने हिंदी वर्तनी शिक्षण, पाठ कैसे पढ़ाएं, आदि के लिए फिल्म निर्माण भी किया। अवकाश ग्रहण के बाद अन्य भाषाशास्त्रियों के सहयोग से भाषा अभियान संस्था की स्थापना की। यह संस्था हिंदीतर रचनाकारों की कृतियों पर चर्चा कर उनके प्रति सौहार्द उत्पन्न करने के प्रयास में संलग्न है। डाॅ. बाछोतिया भाषा अभियान के संस्थापक सदस्य हैं। अतः उनका व्यक्तित्व और कृतित्व ‘अभिनंदन ग्रंथ’ शीर्षक के अंतर्गत रखा गया है।
‘अभिनंदन ग्रंथ’ में ‘अपने समय के सामने’ में रचनाकार डाॅ. बाछोतिया का आत्मकथ्य समाहित है जिसमें उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा और विद्यालयी आदि का जिक्र किया है। उच्च शिक्षा हेतु वे सी. पी. एंड बरार की राजधानी नागपुर स्थित मारिस काॅलेज के विद्यार्थी और मारिस काॅलेज होस्टल में प्रीफेक्ट रहे आदि की आपबीती है।
नागपुर से एम. ए. करने के बाद वे प्रकृति की गोद में स्थित बैतूल आ गए जहां उनकी पत्नी शासकीय सेवा में थीं। वे बैतूल में 18 वर्षों तक शिक्षण कार्य में व्यस्त रहे। बैतूल स्थित जिला हिंदी साहित्य समिति तथा नेहरू आयुर्वेदिक महाविद्यालय के वे संस्थापक सदस्य हैं। यहीं रहते उन्होंने आचार्य नंददुलारे वाजपेयी के निर्देशन में ‘निराला साहित्य का अनुशीलन’ पर सागर विश्वविद्यालय से पी-एच. डी. उपाधि प्राप्त की।
एन. सी. ई. आर. टी. में आना वास्तव में दिल्ली जैसे महानगर से सीधा साक्षात्कार था। यहां एक रचनाकार के नाते एक-एक कर उनकी 25 कृतियां प्रकाशित हुईं जिनमें औपन्यासिक कृतियां, यात्रा साहित्य, कविता, समीक्षा शोध आदि शामिल हैं। जाने-माने समकालीन भाषाविदों, रचनाकारों ने उनकी कृतियों पर अपने विचार व्यक्त किए हैं जो ‘कृति समीक्षा’ के अंतर्गत पठनीय हैं तो ‘समकालीन रचनाकारों की लेखनी से’ के अंतर्गत उनके संस्मरण दिए गए हैं। यह अभिनंदन ग्रंथ तो अल्प ही है डाॅ. बाछोतिया को केंद्र में रखकर भाषा और साहित्य विमर्श ही अधिक है।

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