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Bhartiya Sanskriti Aur hindi Pradesh (2 Vols.)

1,900.00 1,520.00

ISBN: 978-81-7016-438-8
Edition: 2020
Pages: 1488
Language: Hindi
Format: Hardback


Author : Ram Vilas Sharma

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Description

भारतीय संस्कृति और हिन्दी-प्रदेश (2 खंडों में)

महाभारत और रामायण में सभागारों और बड़े-बड़े भवनों का वर्णन है । वे हड़प्पा सभ्यता के अवशेषों में प्रत्यक्ष है । पाटलिपुत्र एक बड़े साम्राज्य की राजधानी बना । वहां के भवन चीनी यात्री फाहियान ने देखे तो उसने सीधा, ये मनुष्यों के नहीं, देवों के बनाए हुए होंगे । पाटलिपुत्र, काशी, मथुरा और उज्जयिनी, ये भारत के प्राचीन नगर थे । आज भी ये संसार के ऐसे प्राचीनतम नगर हैं, जिनका इतिहास अब तक अटूट चला आ रहा है । भारतीय संस्कृति का बहुत गहरा संबंध इन चार महानगरों से है । इन नगरों पर ध्यान देते ही यह प्रचलित धारणा खंडित हो जाती है कि भारत ग्राम समाजों का देश है, यहाँ के लोग कला-कौशल में पिछडे हुए थे और हमें उन्हें ग्राम समाजों की ओर लौट जाना चाहिए । ये चारों महानगर विभिन्न युगों में व्यापारिक संबंधों से परस्पर जुड़े रहे हैं । इन्होंने दक्षिण जनपदों के मदुरै आदि नगरों से भी संबंध कायम किया था । मगध से मालवा तक अब जातीय भाषा के रूप में हिन्दी का व्यवहार होता है । नगरों के बिना हिन्दी का यह प्रसार भारत के सबसे बडे जातीय क्षेत्र में असंभव था । इन नगरों के द्वारा हिन्दी प्रदेश के जनपद प्राचीन काल से परस्पर संबद्ध हुए और दक्षिण भारत से उन्होंने अपना संबंध जोड़ा । इसलिए भारत राष्ट्र के निर्माण में और भारतीय संस्कृति के विकास में हिन्दी प्रदेश की निर्णायक भूमिका स्वीकार करनी चाहिए । दक्षिण में तमिलनाडु, उत्तर में कश्मीर, पूर्व में असम और पश्चिम में गुजरात, दूर-दूर के इन प्रदेशों को जोड़ने वाला, इनके बीच स्थित विशाल हिन्दी प्रदेश है । ऋग्वेद, अथर्ववेद, उपनिषद, महाभारत, रामायण, अर्थशास्त्र की रचना यहीं हुई । यहीं कालिदास और भवभूति ने अपने ग्रंथ रचे और मौर्य तथा गुप्त साम्राज्यों की आधारभूमि यही प्रदेश था । उत्तरकाल से दिल्ली, आगरा इस प्रदेश के बहुत बड़े नगर बने । ये व्यापार के बहुत बड़े केंद्र थे और सांस्कृतिक केंद्र भी थे । तुर्कवंशी राजाओं ने यहीं रहकर शताब्दियों तक एक बहुत बड़े राज्य का संचालन किया था । विद्यापति, कबीर, सूरदास, तुलसीदास जैसे कवि इसी क्षेत्र में हुए । इसी प्रदेश में प्रसिद्ध संगीतकार तानसेन का जन्म हुआ । अपने स्थापत्य सौन्दर्य से संसार को चकित कर देने वाला ताजमहल इसी प्रदेश के आगरा नगर में है । इसलिए इस पुस्तक का नाम भारतीय संस्कृति और हिन्दी-प्रदेश है ।

 

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डॉ. रामविलास शर्मा का जन्म ऊंचगाव-सानी (ज़िला उन्नाव, उ.प्र.) में 10 अक्तूबर, 1912 को हुआ। सन् 1934 में अंग्रेज़ी साहित्य में लखनऊ से एम.ए. किया। सन् 1938 में पी-एच.डी. करने के बाद वहीं अंग्रेज़ी में अध्यापन किया। उसके बाद बलवंत राजपूत कॉलेज, आगरा में सन् 1943 से 1971 तक अंग्रेज़ी विभाग के अध्यक्ष रहे और बाद में के.एम. मुंशी विद्यापीठ, आगरा के निदेशक-पद पर कार्यरत रहे।

सन् 1934 में ‘चांद’ के लिए आलोचनात्मक लेख लिखने वाली उनकी कालजयी लेखनी विगत साठ सालों से सक्रिय बनी हुई है। ‘तारसप्तक’ (1944) के कवि

डॉ. शर्मा का ‘रूपतरंग’ काव्य-संग्रह प्रकाशित है। डॉ. शर्मा के लेखन में उपन्यास तथा नाटक का प्रणयन भी शामिल है।

डॉ. शर्मा सन् 1949 से 1953 तक अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव रहे और दो वर्षों (सन् 1958-59) तक ‘समालोचक’ पत्रिका का संपादन भी किया। उन्हें वर्ष 1970 में ‘निराला की साहित्य साधना’ ग्रंथ के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

साहित्य के प्रतिष्ठित सम्मान–व्यास सम्मान, भारत भारती सम्मान, शलाका सम्मान तथा शताब्दी सम्मान से सम्मानित डॉ. शर्मा ने इनसे जुड़ी राशि को सिद्धांततः कभी स्वीकार नहीं किया।

छह दशकों का सक्रिय लेखन डॉ. शर्मा की प्रकाशित लगभग 50 कृतियों में उपलब्ध है।

स्मृति-शेष : 29 मई, 2000

 

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