Description
इस समय के हिंदी साहित्य के इतिहास की सर्वतोमुखी, सर्वाधिक चर्चित और शिखर प्रतिभा मुद्राराक्षस का यह अप्रतिम उपन्यास पिछले कोई पैंसठ बरसों की सामाजि, सांस्कृतिक और राजनीतिक उथल-पुथल के बीच नारकीय जीवन बिताते वंचित समाज की वह कहानी है, जिसमें यह समाज हर तरह के नरक झेलता है।
‘अर्धवृत्त’ नामक इस उपन्यास में वह सामाजिक विद्रूप अपने समस्त हथियारों के साथ दिखाई देगा, जिसने इतिहास को स्लाटर हाउस में तबदील किया। उन्होंने एक तरफ ईश्वर खड़ा किया है तो दूसरी तरफ समाज के इतिहास को घेरती ईश्वर के दासों की सेना।
कोलकाता की देह व्यापारी स्त्रियों की बस्ती के बीच कोई परिवार ऐसा भी रहता है, जिसके दरवाजे पर लिखा होता है-‘गृहस्थ बाड़ी’। इस देश में कुछ लोग मजबूर हैं अपनी छाती पर ‘गृहस्थ बाड़ी’ की पट्टी चिपकाने को। लेकिन यह पट्टी भी उन्हें बचा कहां पाती है? एक लड़की निकली थी कि वह बांसुरी बजाएगी और चूहों की भीड़ को इंसानों में तबदील करके निकाल ले जाएगी। और कौन इस काम को आगे ले जाएगा, यह उपन्यास इसी बड़े सवाल से मुठभेड़ है।