Description
कूर्मांचल की पृष्ठभूमि पर केंद्रित यह उपन्यास अपने आकार में संक्षिप्त होते हुए भी इस पर्वतीय भूभाग के सामाजिक-सांस्कृतिक सरोकारों से लेकर स्वतंत्रता संघर्ष तक की एक स्मरणीय महागाथा है। शुरू में हास्यास्पद से नजर आते और अपनों के ही बीच प्रायः उपेक्षित रहने वाले हरीश चंद्र पांडे फर्क हरदा को, धीरे-धीरे राजनीतिक चेतना और सामाजिक विसंगतियों के प्रति सजगता से आप्लावित होते चले जाने के साथ ही, गंभीरता से लिया जाने लगता है। इस क्रम में हरदा के कार्यकलाप लोक कलाओं की महत्ता और सामाजिक-राजनीतिक उपयोगिता को बड़े सटीक ढंग से रेखांकित करते हैं, जिससे उन्हें एक महत्तवपूर्ण और जुझारू लोक कलाकार की हैसियत मिलती है। जुझारू होने के कारण उन्हें स्थानीय राजनीतिक और निहित स्वार्थों की चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता है, लेकिन ये चुनौतियां उनके व्यक्तित्व को अधिकाधिक कद्दावर बनाती हैं और अंततः वे एक जनप्रिय लोक कलाकार के रूप में स्थापित होते हैं।