Description
“आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का चिन्तन जगत्’ पुस्तक महत्त्वपूर्ण आलोचक कृष्णदत्त पालीवाल की उल्लेखनीय उपलब्धि है। हिन्दी के पहले आधुनिकआलोचक रामचन्द्र शुक्ल की आलोचनादृष्टि का निर्माण भारतीय सांस्कृतिक-सामाजिक नवजागरण की चेतना में हुआ है। उनको समझना एक युग का मर्म समझना है। लेखक के अनुसार, यह पुस्तक शुक्ल जी के बहुआयामी कृतित्व को भारत के सांस्कृतिक नवजागरण की पृष्ठभूमि में समझने की भूमिका है। पालीवाल जी ने श्रद्धाविगलित होकर विवेचन नहीं किया है। उन्होंने बुद्ध की सम्पूर्ण तार्किकता के साथ निष्कर्ष निकाले हैं। उनके शब्दों में, “यह पुस्तक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के कवि, अनुवाद, भाषाचिन्तक , निबन्धकार, इतिहासकार, मौलिक साहित्यशास्त्र के निर्माता आदि रूपों पर नवीन दृष्टि से पुनर्व्याख्या और पुनर्विचार है। मेरा यह विचार दृढ़ हो गया है कि आचार्य शुक्ल अभी भी चुके नहीं हैं। उनमें ऐसा बहुत कुछ है जो हमारे हिन्दी साहित्य और समीक्षाशास्त्र के लिए अर्थवान और प्रासंगिक है।”
कृष्णदत्त पालीवाल की यह विशेषता है कि उन्होंने साहित्य की परम्परा का गहन अध्ययन किया हेै। इसलिए जब वे आचार्य शुक्ल द्वारा किए गए जायसी, तुलसी व सूर आदि के विवेचन पर बात करते हैं तब ऐसा नहीं लगता कि निष्कर्ष किसी विशेष दिशा में जा रहे हैं। प्रतीत यह होता है कि प्रतिबद्धता और विचारधारा को व्यापक सन्दर्भों के साथ प्रस्तुत किया जा रहा है। उनकी भाषा बहुत रचनात्मक है। वे अपने वाक्यों के संवादधर्मिता का अद्भुत निर्वाह करते हैं। आलोचना पढ़ते हुए प्रायः उसके दुरूह होने की शिकायत की जाती है लेकिन जब ऐसी पुस्तक सामने आती है तब भरोसा होता है कि गम्भीर विषय पर अत्यन्त रोचक ढंग से भी बात कही जा सकती है।