Description
आज “हिंदी गृजुल’, “उर्दू गूजुल’ का विभाजन बेमानी है क्योंकि पिछले कई दशकों से जिस भाषा और जुबान में गृजुलें कही जा रही हें, वो हिंदुस्तानी जुबान है। इस दौर की गृजुलों में न तो अब उर्दू के नाम पर अरबी फारसी के, और न ही हिंदी के नाम पर संस्कृत के क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग किया जा रहा है। आम बोलचाल की भाषा में आमजन की संवेदनाओं को बडे ही प्रभावी ढंग से गृजलों में प्रस्तुत किया जा रहा है, जोकि गृजल के विकास के लिए एक शुभ संकेत है।
अशोक रावत जी उसी परंपरा के अग्रणी शायरों में हें जिनकी शायरी आम आदमी के रोजमर्रा के सरोकारों से जुड़ी हुई है। घर, परिवार, समाज, देश और जूमीनी हकीकृत से जुड़ी, मानवीय सरोकारों से लबरेजु इनकी शायरी पाठक के मन-मस्तिष्क में एक उद्देलन पैदा करती है।
मुझे पूरा यकीन है कि वरिष्ठ गृजुलकार दीक्षित दनकौरी जी के संपादन में, देश के प्रतिष्ठित प्रकाशन संस्थान “किताबघर प्रकाशन’, नई दिल्ली से प्रकाशित इस गृजुल संग्रह की अदबी दुनिया में भरपूर पजीराई होगी। पुस्तक प्रकाशन की बधाई एवं शुभकामनाएँ।