Description
नीरज के प्रेमगीत
लड़खड़ाते हो उमर के पांव,
जब न कोई दे सफ़र में साथ,
बुझ गए हो राह के चिराग़
और सब तरफ़ हो काली रात,
तब जो चुनता है डगर के खार-वह प्यार है ।
०
प्यार में गुजर गया जो पल वह
पूरी एक सदी से कम नहीं है,
जो विदा के क्षण नयन से छलका
अश्रु वो नदी से कम नहीं है,
ताज से न यूँ लजाओ
आओं मेरे पास आओ
मांग भरूं फूलों से तुम्हारी
जितने पल हैं प्यार करो
हर तरह सिंगार करो,
जाने कब हो कूच की तैयारी !
०
कौन श्रृंगार पूरा यहाँ कर सका ?
सेज जो भी सजी सो अधूरी सजी,
हार जो भी गुँथा सो अधूरा गुँथा,
बीना जो भी बजी सो अधूरी बजी,
हम अधुरे, अधूरा हमारा सृजन,
पूर्ण तो एक बस प्रेम ही है यहाँ
काँच से ही न नज़रें मिलाती रहो,
बिंब का मूक प्रतिबिंब छल जाएगा ।
[इसी पुस्तक से ]
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