Description
लोगों का यह वहत है कि संत-महात्माओं को ही चरित्र की आवश्यकता है, गृहस्थियों और दुनियादारों को नहीं। अब जानते हैं कि संत लोग जंगल के एकांत में रहते हैं। न उन्हें ऊधो का लेना, न माधो का देना। न किसी से मिलना-मिलाना, न किसी प्रकार का व्यापार-व्यवहार करना। इस प्रकार जो रहता ही अकेला है, भला वह किसी को सतायेगा क्या? झूठ बोले तो किससे? धोखा दे तो किसे? अतः उनके जीवन में शान्ति-संतोष और भगवद्भजन के अतिरिक्त अन्य चारित्रिक गुणों का व्यवहार करने के अवसर ही बहुत कम आते हैं।
-इसी पुस्तक से