Description
अलग पहचान
व्यंग्य-लेखन की प्रवृत्ति आधुनिक युग की देन है। पिछले चंद दशकों में समाज में विषमताओं, विद्रूपताओं, विडम्बनाओं, विसंगतियों, स्वार्थपरता का जो सैलाब आया है वह अभूतपूर्व है। ऐसी परिस्थितियों में स्वाभाविक है कि जागरूक लेखक व्यंग्य की ओर उन्मुख हो । यहाँ मैं यह छोड़ देना चाहता हूँ कि हिन्दी गद्य-साहित्य में व्यंग्य-लेखन के जितने कीर्तिमान स्थापित हुए, उतने काव्य-क्षेत्र में नहीं । यहाँ इस ओर संकेत करना भी आवश्यक है कि व्यंग्य-साहिंत्य के क्षेत्र में लेखिकाओं की उपस्थिति जोरदार तरीके से दर्ज नहीं हो पाईं। गिनी-चुनी हास्य-व्यंग्य को बहुचर्चित कवयित्रियों में निशा भार्गव का नाम विशेष रूप से उभरकर आया है।
निशा भार्गव के बारे में मैं एक बात खासतौर पर कहना
चाहूँगा कि हास्य-व्यंग्य के रचनाकारों में उनकी पहचान बिल्कुल
अलग है। उनकी कविताओं में हास्य-व्यंग्य के साथ ही एक
अतिरिक्त तत्त्व भी विद्यमान है जिसे मैं संदेशात्मकता का नाम
देना चाहूँगा यद्यपि अपनी पहली कविता ‘मेरे भगवान’ में
उन्होंने भगवान से यही मांगा है—
मुझे हारने वाली नहीं
जूझने वाली हिम्मत
करना प्रदान
ताकि
समस्याओं पर कर सकू
कस कर प्रहार
फिर भी मैं यहाँ कहना चाहूँगा कि उनकी कविता में तीखे प्रहार के साथ ही अच्छे संस्कार की पैरवी भी मौजूद है । उनकी कविताओं में सामाजिक, परिवारिक, राजनीतिक आडम्बरों को तो निपुणता के साथ बेनकाब किया ही गया है, स्वस्थ समाज के निर्माण का आह्वान भी किया गया है। उनकी रचनाएं ठोस सकारात्मक सोच से ओत-प्रोत हैं।
मुझे पूरा विश्वास है कि निशा भार्गव के इस विलक्षण कविता-संग्रह ‘घन चक्कर’ को पढ़कर अच्छे-अच्छे दिग्गज चक्कर खा जाएंगे ।
—बालस्वरूप राही