Description
कायनात के शक्तिकणों को जिसने किसी आकार में पहचान लिया, मुहब्बत और इबादत जिसके लिए एक-सी हो गई, जन्म और मौत भी उसकी सीमा नहीं बन सके, वही काया के दमन में पड़ा हुआ श्रेता युग है…
और काया के दामन में जब अनंत शक्ति के कुछ झांवले से उठने लगते हैं और बहती हुई पवन भी बांस के टुकड़े जैसी काया में कुछ स्वर जगा देती है-वही द्वापर युग है…
कलिकाल की बेला में मूर्छित-सा पड़ा हुआ काया का दामन क्या-क्या संभावनाएँ लिए हुए है, कुछ इसी की बात कहने के लिए-कागज के ये टुकड़े आपके सामने हैं…
-अमृता प्रीतम