Description
अनुवादविज्ञान
अनुवाद को उसके पूरे परिप्रेक्ष्य में लें तो वह मूलतः अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान के अंतर्गत आता है। साथ ही अनुवाद करने में व्यतिरेकी भाषाविज्ञान से भी हमें बड़ी सहायता मिलती है। इस तरह अनुवाद भाषाविज्ञान से बहुत अधिक संबद्ध है।…
जहाँ तक अनुवाद का प्रश्न है, विद्यार्थी-जीवन में पाठ्यक्रमीय अनुवाद की बात छोड़ दें तो सबसे पहले अज्ञेय जी द्वारा संपादित ‘नेहरू अभिनंदन ग्रंथ’ में मुझे अनुवाद करने का अवसर मिला। उसी समय कुछ भाषा-संबंधी लेखों के मैंने अंग्रेज़ी से हिंदी में अनुवाद किए। ‘गुलनार और नज़ल’ नाम से एक अंग्रेज़ी पुस्तक का संक्षिप्तानुवाद 1952 में पुस्तकाकार भी छपा था। 1962-64 में रूस में अपने प्रवास-काल में कुछ उज़्बेक, रूसी तथा इस्तोनियन कविताओं का भी मैंने हिंदी-अनुवाद किया था। ताशकंद रेडियो में 1962 में मेरे सहयोग से हिंदी विभाग खुला था। वहाँ प्रतिदिन आध घंटे के कार्यक्रम के लिए रूसी, उज़्बेक, अंग्रेज़ी आदि से हिंदी में अनुवाद किया जाता था, जिसका पुनरीक्षण मुझे करना पड़ता था। 1968 में भारतीय अनुवाद परिषद् ने अपनी त्रैमासिक पत्रिका ‘अनुवाद’ के संपादन का भार मुझे सौंपा और समयाभाव के कारण, न चाहते हुए भी, कई मित्रों के आग्रह से मुझे यह दायित्व लेना पड़ा।
प्रस्तुत पुस्तक की सामग्री के लेखन का प्रारंभ मूलतः ‘अनुवाद’ पत्रिका का सिद्धांत विशेषांक निकालने के लिए कुछ लेखों के रूप में हुआ था। विशेषांक के लिए कहीं और से अपेक्षित सामग्री न मिलने पर धीरे-धीरे मुझे अपनी सामग्री बढ़ानी पड़ी, किंतु अंत में सामग्री इतनी हो गई कि विशेषांक में पूरी न जा सकी। वह पूरी सामग्री कुछ अतिरिक्त लेखों के साथ प्रस्तुत पुस्तक के रूप में प्रकाशित की जा रही है।
–भोलानाथ तिवारी
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