अदाकारा मधुबाला: दर्दभरी जीवन कथा


प्रस्तावना

हुस्त की मलिका थी मधुबाला
सारे संसार को उन्होंने गुंजा डाला
बहुत सितारे आए और चले गए!
मगर उन्होंने अपना मकाम बना डाला!

मधुबाला अपने जमाने की बहुत ही खूबसूरत अदाकारा (अभिनेत्री) थी। मैं तो उनको उनके बचपन से ही जानता था। उनके वालिद अताउल्ला ख़ान साहब मेरे दोस्तों में से एक थे और मधुबाला हमेशा साए की तरह उनके पास रहा करती थी। लिहाजा हम दोनों में हमेशा गुफ्तगू हुआ करती थी।

मधुबाला सीधी-सादी लड़की थी तथा मन एकदम साफ था! बड़ा लुभावना स्वभाव था उसका और चेहरे पर हमेशा हंसी बिखेर देती थी। कभी कोई बात बन जाती थी तो वह हंस दिया करती थी। अगर वह बिगड़ जाती थी तो भी हंसकर बात को टाल दिया करती थी। उसने कभी किसी का दिल नहीं दुखाया। हर वक्‍त वह निर्माता, निर्देशक तथा कलाकारों के साथ अच्छा बर्ताव किया करती थी।

मेरे संगीत दिए हुए ‘दुलारी’, ‘अमर’ तथा ‘मुगुल-ए-आजुम’ फिल्मों के कई गाने उन्होंने अपनी अदाकारी से बेजोड़ बना दिए। इन फिल्मों की वजह से मेरे और उनके ताल्लुकात बढ़ते गए। उनका मकान मेरे घर के पास ही था। इसलिए इत्मीनान से हम दोनों अकसर मिला करते थे। उन्हीं की बदौलत मुझे मालूम हुआ कि उनकी जिंदगी एक दर्दभरी कहानी थी। खुदगूर्ज इनसानों ने उनकी जिंदगी तबाह कर डाली थी।

मुझे आज भी अच्छी तरह याद है कि शादी के बाद एक दिन वह मेरे घर पर पधारी थी। उसके हमेशा हंसी और खुशी से भरे चेहरे पर आंसू छाए हुए थे। रोते-रोते ही वह मुझसे कहने लगी, “नोशाद साहब, अल्लाह से मेरे लिए दुआएं मांगिए ताकि मैं जल्दी ही मर जाऊं। अब यह बेबस जिंदगी मुझे बरदाश्त नहीं होती। इससे मौत ही अच्छी।” 

हर इनसान को एक न एक दिन जिंदगी से रुख़सत लेनी पड़ती है। मगर मधुबाला वक्त से पहले ही अल्लाह मियां को प्यारी हो गई। मधुबाला तो चली गई मगर अपने पीछे वह अपनी यादें, जीती-जागती तसवीरें तथा बेहतरीन अदाकारी छोड़ गई। उसकी मौत के पश्चात्‌ कुछ सालों बाद उसका घर ‘अरेबियन विला’ भी तोड़ दिया गया। अब जब कभी मैं उस जगह से गुज्रता हूं तो अफसोस करता हूं। मधुबाला का मकान भी एक याद ही बन गया।

मुझे खुशी हो रही है कि जाने-माने पत्रकार श्री शशिकांत किणीकर जी ने इस बेहतरीन अदाकारा की जीवनी पर किताब लिखी। मेरे ख़याल से मधुबाला की जीवन कथा पर आज तक एक भी किताब हिंदी भाषा में मौजूद नहीं हो पाई है। उसकी कमी आज किणीकर साहब के सजीव कलाम से पूरी हो रही है, इसका मैं इस्तिकुबाल करता हूं। मधुबाला, जो आज भी अपने फन के जरिए लोगों के दिलों में बसी हुई है, मेरा विश्वास है कि इस किताब के जरिए वह और भी अपनी जगह मुकृम्मल कर देगी। मेरी दिली दुआ है कि मधुबाला की यादें इस किताब को पढ़ने वालों के दिल को हमेशा-हमेशा ताजगी निछावर करे और किणीकर साहब का कलाम कामयाबी हासिल करे।

–नौशाद अली

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