देश के शीश : गुरु तेग बहादुर


सुहृद संवाद

भारत एक महानू राष्ट्र है जिसकी स्वर्णिम गाथा संपूर्ण मानव सभ्यता के गौरवशाली पक्ष को प्रकट करने वाली है। इस राष्ट्र का उद्भव धर्म, सत्य और निष्ठा के यज्ञ कुंड से हुआ। यहां की हवा में आदिकाल से ही प्रेम, शांति और सहयोग की मन को बांधने वाली सुगंध का साम्राज्य रहा है। सच के लिए सर्वाधिक उर्वरा भूमि भारत की सिद्ध हुई है। सच की समझ और सच के लिए प्रतिबद्धता का गुणसूत्र इस राष्ट्र की आत्मा है जिससे अनेक धर्म और विचार समय-समय पर पुष्पित, पल्‍लवित हुए। सन्‌ 469 में अवतरित हो गुरु नानक साहिब ने सच के लिए सर्वस्व समर्पण की राह खोली। इससे धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक त्रास से निष्प्राण हो चुकी भावनाओं को स्वर मिला। हताश हो चुकी मनःस्थिति को तथा आशाओं को. नए पंख लगे। लोगों के मन संयम, सहज, संतोष, दया, प्रेम और बंधुत्व के दीपों से जगमग हो उठे। अधर्म और निर्दयता के सामने सच को डटकर खडे होने का बल मिला। देश की स्थितियां त्वरित गति से अवसान की ओर जा रही थीं, जब औरंगजेब दिल्‍ली के तख्त पर बैठा। मुगल शासन का चेहरा क्रूरतम होने लगा। इधर गुरु तेग बहादुर जी नौवें सिख गुरु के रूप में गुरुगद्दी पर आसीन हो चुके थे। वे समझ चुके थे कि अब अतिरिक्त ऊर्जा और विस्तारित संकल्प की आवश्यकता होगी। उन्होंने द्रुत गति से पंजाब से उत्तर प्रदेश, बिहार होते हुए बंगाल, आसाम तक यात्राएं कर व्यापक धार्मिक चेतना जगाई। गुरु तेग बहादुर साहिब जानते थे कि धर्मांधवा और कट्टरता को धार्मिक सहिष्णुता और उदारता की शक्ति से ही पराजित किया जा सकता है। यह शक्ति गुरु तेग बहादुर जी को उनकी परमात्मा भक्ति और सदगुणों के दृढ़ संकल्प से प्राप्त हुई थी। वे परिवार में रहते हुए भी परमात्मा के प्रेम में रमे हुए थे। संसार में विचरते हुए भी वे अध्यात्म लोक में निवास कर रहे थे। गुरु तेग बहादुर जी परम आत्म अवस्था में परमात्मा का रूप हो चुके थे। उन्होंने संसार को भी विकार, माया का आकर्षण त्याग, सांसारिक सुखों को मिथ्या मान परमात्मा की शरण लेने को प्रेरित किया-‘रामु सिमरि रामु सिमरि इहै तेरे काजि है।’

गुरु तेग बहादुर जी में धर्म बल के रूप में प्रखर हो रहा था। वह निर्बल का बल था। उनकी वाणी और आचार से वह कल्पवृक्ष प्रकट हुआ जो समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करने वाला था। यह समय की मांग थी। परमात्मा की लीला ही ऐसी है। वह यदि अधर्म को अवसर देता है तो धर्म को भी सशक्त करता है। अधर्म यदि मनुष्य की प्रताड़ना का कारण बनता है तो धर्म उस दुःख से उबारने का वर। यह क्रम आदिकाल से ही चल रहा है। परमात्मा ने सारी सृष्टि रची है। वह सभी जीवों का पालक, रक्षक, सखा और दाता है। परमात्मा पल-पल उनकी चिता करता है, उसकी महिमा वही जानता है। वह कौतुक करता रहता है। सत्य और असत्य का दूंद्र भी उसी का रचा हुआ है। असत्य प्राय: बलशाली होता हुआ दिखा है किंतु कभी विजयी नहीं हो सका। परमात्मा सदैव अपने भक्तों की लाज रखता आया है। तभी उसे भक्त वत्सल भी कहा जाता है। यह अवसर पुनः आ गया था।

औरंगजेब मर्यादा की सभी सीमाएं ध्वस्त कर अपनी धार्मिक कट्टरता की अंध नीतियां प्रभावी करना चाहता था। उसकी क्रूरता का सर्वाधिक प्रभाव कश्मीर के हिंदुओं पर पड़ रहा था। त्राहि-त्राहि कर रहे ब्राह्मणों को कोई ठौर नहीं मिला तो आनंदपुर साहिब गुरु तेग बहादुर साहिब की शरण में आए। गुरु तेग बहादुर साहिब की प्रखर अंतर चेतना और सच के लिए उनकी अप्रतिम प्रतिबद्धता ही कश्मीरी ब्राह्मणों के लिए आशा का एकमात्र स्रोत बचा था। गुरु तेग बहादुर जी के रहते राष्ट्र और सच कैसे पराजित हो सकते थे। विदेशी आक्रांता औरंगजेब के अहंकार का उसकी राजधानी में ही अपने शीश के बलिदान के प्रचंड प्रहार से गुरु तेग बहादुर साहिब ने मर्दन ही नहीं किया, उसके राज्य की चूलें भी हिला दीं। राष्ट्र की अस्मिता पर संकट के जो घने बादल घिर आए थे उनके छंटने की कोई आशा नहीं थी। गुरु तेग बहादुर साहिब के बलिदान से राष्ट्र का मस्तक पुनः विश्वास से दमकने लगा। वे सांसारिक लोग जो इस महान्‌ बलिदान के मर्म से अनभिज्ञ थे भले ही शोकग्रस्त हो गए किंतु जिन्हें परमात्मा की लीला का तनिक भी बोध था वह मन से जय-जयकार करने लगे। निर्दयता का चक्र थम गया। गुरु तेग बहादुर साहिब इतिहास का एक ऐसा रत्नजड्त पृष्ठ लिख गए जिसकी आभा हतप्रभ करने वाली भी है और आनंदित करने वाली भी। वे आनंदपुर साहिब से स्वयं घोड़े पर सवार हो दिल्‍ली आए थे। वास्तव में यह बलिदान से अधिक धर्मयुद्ध था। जिस औरंगजेब की ताकत से पूरा देश कांप रहा था, निर्भयता से उसके आगे सिर ऊंचा कर आ खडे होना, उसकी ताकत, उसके अहंकार, उसके पुरुषत्व को पूरी तरह नकार देना था। धर्म की श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए यह आवश्यक था। अधर्म और निर्दयता कैसा भी रूप धारण कर लें उनकी क्षमता धर्मपालकों के तन तक आकर बाधित हो जाती है। धर्मपालकों के मन का क्षय नहीं कर सकती। 

गुरु तेग बहादुर साहिब ने संसार को आनंद की ऐसी भावना दी जो अमिट है। सोचा भी नहीं गया था कि सहज, संयम और विश्वास ऐसा ‘फलीभूत होता है। गुरु साहिब के जीवन ने जहां लाखों लोगों का उद्धार किया, उनके बलिदान ने करोड़ों लोगों को स्वाभिमान और सम्मान की खुली सांसें दीं। आने वाली पीढ़ियां शाप मुक्त हो गईं। उन्होंने नया नगर बसाकर उसका नाम आनंदपुर साहिब रखा था। उनके त्याग से पूरा भारत ही आनंदपुर हो गया। पंडित कृपाराम और उनके साथ आए ब्राह्मणों ने गुरु तेग बहादुर साहिब की शरण लेकर तिलक और जनेऊ हेतु संदा के लिए अमरत्व प्राप्त कर लिया। ये भारत की अस्मिता के प्रतीक थे और गुरु तेग बहादुर जी उनके रक्षक बने। कश्मीर के ब्राह्मण उनकी शरण में आए थे। शरणागत का मान उनका स्वभाव था। फिर भी राष्ट्र के लिए तो यह ऋण ही है। यह ऐसा ऋण है जिसे कभी उतारा नहीं जा सकता। राष्ट्र में धर्म और सच सदा अजेय और अभय रहे, इसकी कामना तो की जानी चाहिए।

गुरु तेग बहादुर साहिब के जीवन और उपदेशों को शब्दों में उतारना संभव नहीं है। जितना उनके निकट जाते जाएं शब्द उतने ही कम पड़ते जाएंगे। वे धर्म का बल हैं और निर्भय धर्म हैं। ये दो सूत्र ही उनका परिचय हैं किंतु इनका विस्तार अनंत है, अनंत है। उनकी महिमा अनंत है। गुरु तेग बहादुर साहिब का अवतार पुन: नहीं हो सकता। वे मानव समाज को, इस राष्ट्र को इतना दे गए हैं कि उसके फल हमें तब तक मिलते रहेंगे, जब तक यह सृष्टि रहेगी। गुरु तेग बहादुर जी की महिमा का सदैव गुणंगान होता रहेगा। आइए उनके जीवन और वाणी में प्रकाशित हो रही परमात्मा की मेहर का दर्शन करें। उनके अंतर के जोरावर को नमन करें। उनके निकट ही होने की सुहावी अनुभूति करें। यह संभव हो सका है किताबघर प्रकाशन, नई दिल्‍ली के परम श्रद्धेय श्रीयुत सत्यत्रत जी की पुनः-पुनः कीं जाने वाली असीम कृपा से। वे दयालु और उदारमना हैं। कभी भी निराश नहीं करते। उनकी अनुकंपा बनी रहे यह प्रार्थना सदैव परमात्मा से है। मेरा कोई दावा नहीं ज्ञान का। करबद्ध प्रार्थना है कि त्रुटियां मिलें तो क्षमा करने का अनुग्रह करें।

यह पुस्तक आवर सहित अपने पड़वादा सरवार हरी सिंह जी और बावा सरवार लाथ सिंह जी को समर्पित है, जिन्होंने वेश-विभाजन के समय पाकिस्तान में वंगाइयों का साहसपूर्वक सामना करते अपने ग्राणों का अन्य परिवारजनों सहित उत्सर्ग कर विया। यह संभवत: गुरु तेग बहादुर जी के मार्ग पर चलने का एक प्रयास था। भारत एक अद्भुत भूभाग है। आइए इसे आनंदलोक बनाएं।

-डॉ. सत्येन्द्र पाल सिंह

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