उड़ानें ऊंची-ऊंची तथा अन्य कहानियां


Udaaneunchiunchi

कब तक?

स्त्री-विमर्श पर अनेक चर्चाएं, बहस, नारे व आलेख जोर पकड़ रहे हैं पर उनकी मदद में परिवार, समाज की भागीदारी बहुत कम है। अपने ही परिवार का झूठा गर्व, ब्राह्मणत्व का अहं याद आते ही कामिनी का रोष से चेहरा सुर्ख हो जाता है। स्नेह का स्निग्ध गोरा चेहरा बहुत सारे प्रश्न ले सामने आ जाता है। मिश्रा परिवार की सबसे छोटी बेटी स्नेह ने परिवार के सारे अभावों से सामंजस्य बैठा लिया था क्योंकि पिता की मृत्यु के पश्चात् अपढ़ मां को खेत-खलिहान, मिट्टी-गारे व ईंट के जहां से जूझते देखा है। अर्थाभाव से बड़ी बहन शांता कानपुर के परंपरावादी परिवार में टीबी से मर गई, दूसरी बहन रेखा बूढ़े से ब्याह दी गई पर बूढ़ा भी उसे तिल-तिल जला रहा है। उससे छोटी यूपी के एक कस्बे में शराबी ऐयाशी पति को कमाकर खिलाते हुए हाड़-मांस का पिंजरा हो गई। दो ब्राह्मण पुत्र परिवार की चिंता से मुक्त हैं। छोटा कांस्टेबल है। दिन-रात गाली बकता मां को राशन भर ला देता है। स्नेह को प्यार से सब रानी कहते। उसकी मां को पूरा विश्वास था कि वह किसी योग्य वर से ब्याही जाएगी। इसी विश्वास पर वो मंदबुद्धि स्नेह को झिड़कतीµ‘घर के काम के बावजूद सुबह उठकर पढ़ना मत भूलना।’ उस दिन भी रानी अपनी तितर-बितर जिंदगी को संवारने हेतु थकी-मांदी होने पर भी पढ़ने बैठी पर भाई ने सख्त आवाज में पुकाराµरानी परांठे व चाय बना, मुझे परेड में जल्दी जाना है। नींद से ऊंघती स्नेह चौके में धंसी, चूल्हे में कंडे पर घासलेट डाल उसने जैसे ही माचिस जलाई तो नीचे गिरे घासलेट में आग फैली और दर्द से रानी जलती हुई चीखने लगीµबचाओ। सब दौड़े तब लज्जावश रानी ने कपड़े अपनी जांघ के बीच कर लिए। भाई के हाथ जले, मां के कुछ बाल, पर रानी बहुत जल गई।
सांसों की सीमाएं तो नहीं टूटीं और लापरवाह इलाज के बावजूद वो बच गई। हां, उसका चेहरा वैसा ही निष्पाप भोला रहा। पल भर में शेष मीठापन कसैला हो गया क्योंकि जलकर जंघा का मांस पेट से जुड़ा और रानी ठीक से चल भी नहीं पाती। तब भी झुकी हुई लड़की पूरे समय मां को छांह देती। घरेलू कार्यों से मुंह न मोड़कर आठवीं तक सफल रही। उसकी इस दुर्गति को देख हम सबने उसे बीटी करने का सुझाव दिया। हिम्मत व साहस से शरीर से झुकी उस लड़की ने कम नंबरों से ही बीटी कर ही लिया। जिला शिक्षा अधिकारी ने उसे प्राइमरी पाठशाला पंधाना में नौकरी दे दी। रानी इतनी खुश थी कि अपने इस छोटे से जाफरी वाले मकान में जैसे वो हवा महल में रह रही हो। क्योंकि वो मां को भी साथ ले गई। शायद जीवन के कुछ वर्ष यहां के रहने में भी सुखकर थे। लेकिन रानी की मां सुमन का ब्राह्मणत्व ऐंठा और बिना किसी की सलाह के एक दिन पता चला कि मां-बेटे ने रानी का ब्याह गांव के पांडे जी से कर दिया जिनकी एक परचून की गुमटी थी।
जली-कटी ब्याही सी स्त्री को पांडे जी ने यूं ही तो नहीं ब्याहा। सुमन से उन्होंने किराने का दो माह का सामान, पलंग, गद्दे, बर्तन एवं गहने ले ही लिए। बेटी की कमाई से जमा-पूंजी इसी तरह काम आ गई। बेजोड़ हिम्मत से नौकरी करती रानी पूरे माह का वेतन सहर्ष पति के हाथों में पतिव्रता बन सौंप देती। छह माह संतोषजनक थे और जो नहीं होना था वह हो गया था। ऐसी शारीरिक विकृति बीच वह गर्भवती हुई और टेढ़ी-मेढ़ी स्थिति में उसने एक कन्या को जन्म दे दिया।
रानी जब कामिनी से मिली तो कामिनी ने दुःख-दर्दों पर तड़पती फुफेरी बहना को कलेजे से लगाया। रानी, इस बच्चे के बाद मैं तेरा ऑपरेशन करवा पेट व जांघ अलग करवा दूंगी। थोड़ी हिम्मत और रखना। ये पांडे जी तुझे अच्छे से रखते हैं न?
हां, वो शरमाई। व दो-तीन दिनों बाद वापस पंधाना लौटी।
लौटते ही वो सामने खड़े तूफान से अस्त-व्यस्त हो गई। अचानक घर देर से पहुंचने पर दरवाजा एक भीलनी ने खोला। सुमन ने पूछा, तुम कौन हो, यहां क्या कर रही हो?
मैं पंडित जी की पत्नी हूं।
बस बहस, दोष, गुणोें का बखान प्रारंभ हो गया। पांडे जी ने ढीठता से कहा, आपकी लड़की को कोई भी कष्ट नहीं देता पर ऐसी लूली-लंगड़ी स्त्री मेरी भरपाई नहीं कर पाती, मैं प्रेमा से प्रेम करता हूं। वो मेरी पत्नी को त्रस नहीं देगी बल्कि घर के कामों में मदद ही करेगी।
तो शादी क्यों की?
गुस्सा मत हो। आप समझती हैं न ब्राह्मण समाज में बच्चे तो जाति वाली के ही चाहिए न।
लड़की बड़ी हुई ही थी कि रानी दूसरे बच्चे की मां बन रही थी। उसे इस भार के साथ झुककर चलते देख कामिनी क्रोध से पूछ बैठीµक्यों इतनी जल्दी मरना चाहती है। तेरा पहला बच्चा कितनी परेशानी से हुआ था न?
इन्हें बेटा चाहिए न।
तू मर गई तो क्या उसे भटकने के लिए छोड़ जाएगी। और कामिनी ने तय कर उसका पूरे नौ माह बाद बच्चा होते ही दोनों ऑपरेशन करवा दिए।
पांडे जी ने सुना तो गालियां देने लगेµससुरी, तूने तो दूसरी भी धेंध पैदा कर दी, अब बेटा कैसे पैदा होगा?
मेरी हालत देख रहे हो जी, मैं क्या तीसरा पैदा कर सकती हूं?
जबान चलाती है? साली औरत को देवी कहते हैं क्योंकि वो पति की आज्ञा मानती है पर तू? और थप्पड़ पर थप्पड़ जो शुरू हुए तो वे बढ़ते ही गए। यूं तो रानी का तबादला हरसूद हो गया और वो वहां मां के साथ सुखी थी। पोलियोग्रस्त छोटी बच्ची भी पल ही रही थी, परंतु पांडे जी वहां भी पहली को पहुंच रानी से रुपए छीनने से बाज नहीं आते। कुछ समय बीता कि एक शाम पांडे जी ने अपनी औकात अनुसार सुमन से छुटकारा पाने के लिए उसके ही सामने पत्नी से जबरदस्ती की। पेटी खोली और रुपए निकाले व बड़ी बेटी को ले लौटने लगे। सुमन हताश हो उनके पैर पर गिर पड़ी। छोड़ दो इस लंगड़ी अपाहिज लड़की को। पेट भरने को तो छोड़ दिया करो।
तुम्हें इससे क्या? शर्म नहीं आती बेटी की कमाई खाते? मैं तो इसका पति हूं।
तो पति धर्म ही निभा दो। बस युद्ध तो युद्ध।
और सुमन ने कामिनी की ही गोद में दम तोड़ दिया।
कामिनी कुछ समय को रानी को अपने साथ ही ले आई और उसने महिला आयोग, जागृति मंच से रानी को मिलवा आवेदन-पत्र लगवा दिए, लेकिन वे आवेदन पत्रें के ढेर पर मोम सी खड़ी बस आश्वासन ही बांटती रही। हारकर कामिनी ने रानी से कहा, तुम तुरंत पगारे वकील साहब के पास चलो और तलाक की अरजी लगा दो।
जीजी भाई सुनेगा तो डांटेगा। मेरा भाग्य ही खोटा है।
भाग्य को मत कोसो। ऐसे डर-भय व दहशत में जीकर क्या करोगी। तुम्हें छोड़ छुट्टी तो मिले। अकेली ही सुखी रहोगी। भाई क्या तुम्हें बचाने आता है?
कहां जीजी। पिछली बार बेहोश हो पड़ी थी। बिट्टी रोती थी। मेरा चपरासी बाबूलाल आया तो उसने मुझे पलंग पर डाला व बच्ची को संभाला। अब तो उसे कुछ रुपए दे देती हूं। वो खाना भी बना देता है। बूढ़ा अकेला है, दो रोटी में खुश हो जाता है।
बढ़िया है, मैं भी उसे मदद करती रहूंगी। कामिनी ने बहन को संभाला।
लो, बाबूलाल तो लेने भी आ गया। रानी खुश थी। अभी ऑटो में सामान रखा ही जा रहा था कि रानी का भाई बबलू मोटरसाइकिल से आया व उसे डपटता चीखाµबेशर्म तलाक लेगी और इस चपरासी से मस्ती मारेगी? देखता हूं कैसे तलाक लेती है।
कुछ माह पश्चात् बाबूलाल का ही फोन आया, जीजी, रानी मैडम चल बसीं। परसों पांडे जी अपनी बेटी के साथ आए व उसके साथ मिलकर रानी मैडम के कपड़े-बर्तन सब उठा उसे पीटकर अधमरा बना चले गए।
तत्परता से कामिनी जीप से तो रानी की लाश सड़ने से पहले उठवा भाई के घर ले गई। पांडे जी वहां अवतरित हो दहाड़ मार रो रहे थे। हाय रानी तुम हमें अकेला कर छोड़ गई। रानी को महिलाओं ने नहा-धुला सजाकर कहाµकितनी भाग्यशाली थी कि सौभाग्यवती ही मरी। कितना अच्छा पति मिला।
तेरहवीं पर ही कामिनी ने बबलू व पांडे को मुस्कराते रानी के प्रॉविडेंड फंड एवं पेंशन का हिसाब जमाते सुना। कामिनी की आंखें डबडबा आईं। रानी का सुंदर चेहरा कई प्रश्नों के साथ बार-बार स्मरण आ रहा था। वह कई बार पूछती रही, जीजी क्या स्त्री को खट-खट कर मरना ही उसका देवित्व होता है। कामिनी सोच रही थी कि कब तक ससुराल से स्त्री की अरथी ही निकलगी?

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